( Ashwin Agarwal)
भारत में रमजान के पवित्र महीने में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने ‘सौगात-ए-मोदी’ नामक एक नई पहल की शुरुआत की है। इस योजना के तहत, देश भर के 32 लाख गरीब मुसलमानों को ईद से पहले विशेष किट वितरित की जाएंगी। हालांकि, इस योजना को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं, खासकर उसके मंशा, समय और राजनीतिक प्रभाव को लेकर।
140 करोड़ भारतवासियों की ओर से सौगात
जमाल सिद्दीकी
बीजेपी के माइनॉरिटी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने इस योजना का समर्थन करते हुए कहा कि यह गरीब मुसलमानों को आवश्यक सामान मुहैया कराने के लिए है, ताकि वे ईद का त्योहार गरिमा के साथ मना सकें। सिद्दीकी ने कहा, “यह सौगात भारत के प्रधानमंत्री की ओर से नहीं, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों के परिवार के मुखिया की ओर से है।” उन्होंने इस योजना को भाजपा की ओर से नहीं, बल्कि भारतीय जनता के एक सकारात्मक कदम के रूप में पेश किया। हालांकि, बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इसकी घोषणा से कुछ राजनीतिक मकसद को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।
“खजूर खिलाकर बुलडोजर चला रहे हैं”
कौशरअली सैयद
गुजरात के सामाजिक कार्यकर्ता कौशरअली सैयद ने इस पहल को चुनावी राजनीति का हिस्सा बताते हुए कहा, “खजूर खिलाकर बुलडोजर चला रहे हैं।” उनका कहना है कि बीजेपी को मुसलमानों की असल जरूरतें समझनी चाहिए, बजाय इसके कि उन्हें किट देकर लुभाने की कोशिश की जाए।
3. “ईद के दिन मोदी जी खजूर बांटें या बकरी ईद पर बकरा बांटें, कोई फर्क नहीं पड़ेगा”
सलीम हाफ़िज़ी
राजकीय विश्लेषक और मुस्लिम नेता सलीम हाफ़िज़ी ने इस पहल को बीजेपी के लिए एक और राजनीतिक जुमला बताया। उन्होंने कहा, “ईद के दिन मोदी जी खजूर बांटें या बकरी ईद पर बकरा बांटें, इससे मुसलमानों को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।” उनके अनुसार, मोदी सरकार की नीतियों ने मुसलमानों को कभी भी कोई लाभ नहीं पहुंचाया है, और इस तरह की योजनाएं केवल वोटों की राजनीति के लिए हैं।
गुजरात AIMIM के अब्दुल अहमद ने उठाए सवाल
गुजरात AIMIM के युनुस भाई ने सवाल उठाया कि गुजरात में अल्पसंख्यकों के लिए विशेष बजट क्यों नहीं है, जबकि उन्हें चुनावी रियायतें दी जा रही हैं।
5. “खजूर खाने वालों की दुआओं के हकदार बन सकते हैं”
अमजद पठान
AAP गुजरात अल्पसंख्यक विंग के अध्यक्ष अमजद पठान ने कहा कि हिंदुओं द्वारा मुसलमानों को मिठाई खिलाना और मुसलमानों द्वारा खजूर खिलाना हमारी सच्ची परंपरा है। लेकिन, उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी सरकार मुसलमानों को नमाज पढ़ने से भी रोक रही है, जो उनके अनुसार इस पहल के मंतव्य को संदिग्ध बनाता है।
बीजेपी और मुस्लिम समुदाय के बीच ऐतिहासिक तनाव
बीजेपी और मुस्लिम समुदाय के बीच ऐतिहासिक तनाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वक्फ संशोधन विधेयक, तीन तलाक, NRC-CAA, यूसीसी, बाबरी मस्जिद-राम मंदिर विवाद और कई राज्यों में “बुलडोजर पॉलिटिक्स” जैसे मुद्दे मुस्लिम समुदाय में बीजेपी के प्रति अविश्वास पैदा कर चुके हैं। इस स्थिति में, कई लोग ‘सौगात-ए-मोदी’ को एक पाखंड के रूप में देख रहे हैं।
क्या मुसलमानों को यह योजना स्वीकार होगी?
मुसलमानों के बीच इस योजना की स्वीकार्यता इस बात पर निर्भर करेगी कि इसे कितने संवेदनशील और पारदर्शी तरीके से लागू किया जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, या पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में, जहां बीजेपी की नीतियों का विरोध अधिक है, यहां इस योजना को स्वीकार करने में संकोच हो सकता है। वहीं, गरीब मुसलमानों के लिए यह योजना एक व्यावहारिक मदद हो सकती है, जिसे वे बिना किसी राजनीतिक नजरिए के स्वीकार कर सकते हैं।
इस योजना की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि बीजेपी इसे कैसे लागू करती है और मुस्लिम समुदाय का विश्वास हासिल करती है।