दिल्ली। डॉ. भीमराव अंबेडकर आज जब पूरा भारत डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती मना रहा है, तब मैं, पीपल मैन डॉ. रघुराज प्रताप सिंह, उन्हें हृदय से नमन करता हूँ – एक ऐसे महामानव को, जिन्होंने न केवल भारत के संविधान की रचना की, बल्कि करोड़ों शोषितों, वंचितों और दबे-कुचले समाज को एक नई पहचान दी, एक नई चेतना दी, और सबसे बड़ी बात – सम्मान से जीने का अधिकार दिलाया। डॉ. अंबेडकर संविधान के शिल्पकार से लेकर सामाजिक क्रांति के अग्रदूत तक डॉ. अंबेडकर का जीवन अपने आप में एक प्रकाश स्तंभ है। उन्होंने जिस भारत की कल्पना की थी, वह केवल एक राष्ट्र नहीं, बल्कि न्याय, समानता और स्वतंत्रता का मंदिर था। उनका जीवन संघर्षों से भरा हुआ था – लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। शिक्षा को हथियार बनाया, संविधान को आत्मा बनाया और सामाजिक न्याय को संकल्प। भारत के संविधान में जो स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और न्याय की गूंज है – वह अंबेडकर की आत्मा की ही प्रतिध्वनि है। आज अगर हम वोट दे सकते हैं, बोल सकते हैं, अपने अधिकारों के लिए खड़े हो सकते हैं, तो वह केवल और केवल अंबेडकर की दूरदर्शिता और त्याग का परिणाम है। अंबेडकर की सोच और पर्यावरण का संबंध आप सोच सकते हैं – एक समाज सुधारक और एक पर्यावरणविद के बीच क्या रिश्ता हो सकता है? पर मैं कहता हूँ – अंबेडकर का जीवन ही हमें सिखाता है कि जिस समाज में असमानता है, वहां प्रकृति का भी दोहन होता है। उन्होंने कहा था कि “मनुष्य की गरिमा और जीवन की गुणवत्ता तभी संभव है जब संसाधनों का समान वितरण हो”। क्या आज का पर्यावरण संकट – जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, पेड़ों की कटाई – इसी असमानता का रूप नहीं है? डॉ. अंबेडकर हमें सिखाते हैं कि जब तक हर व्यक्ति को जीने की, साँस लेने की और प्रकृति से जुड़ने की समान स्वतंत्रता नहीं मिलेगी, तब तक विकास अधूरा है। एक हरित भारत, एक समतामूलक भारत ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी बाबा साहेब को। बाबा साहेब का वैश्विक संदेश डॉ. अंबेडकर का योगदान केवल भारत तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने दुनिया को यह बताया कि कैसे एक शोषित वर्ग का व्यक्ति शिक्षा और आत्मबल के जरिये इतिहास बदल सकता है। उनका जीवन – अमेरिका, ब्रिटेन और भारत के बीच एक पुल था, जिसमें आधुनिकता, न्याय और संस्कृति का समावेश था। आज जब दुनिया पर्यावरण संकट, सामाजिक असमानता और युद्धों से जूझ रही है, तब अंबेडकर का संदेश – “शिक्षित बनो, संघर्ष करो, संगठित रहो” – पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है। उनके विचार केवल संविधान के पन्नों में नहीं, बल्कि हर जागरूक नागरिक की चेतना में जीवित हैं। पीपल मैन की श्रद्धांजलि – अंबेडकर से प्रेरणा, पर्यावरण की सेवा मेरे लिए डॉ. अंबेडकर केवल संविधान निर्माता नहीं, बल्कि “प्रेरणा पुरुष” हैं। जैसे उन्होंने समाज को चेतना दी, वैसे ही मैं प्रकृति को चेतना देना चाहता हूँ। मैंने अपने जीवन को वृक्षारोपण, जल – संरक्षण और पर्यावरण – शिक्षा को समर्पित किया है, क्योंकि मेरा मानना है – “अगर पेड़ नहीं बचे, तो संविधान किसके लिए?” मैंने अब तक लाखों पेड़ लगाए हैं, हजारों युवाओं को पर्यावरण योद्धा बनने के लिए प्रेरित किया है। मेरी हर पहल, हर अभियान – चाहे वह Peepal Man Global University की परिकल्पना हो या रघुराज पीपल मैन फाउंडेशन द्वारा स्कूल खोलना – उसका मूल उद्देश्य वही है जो अंबेडकर ने सिखाया – “सबको समान अवसर देना, प्रकृति सहित।” एक याचना – देश से, समाज से, विश्व से इस अमूल्य अवसर पर मैं देशवासियों से एक विनम्र आग्रह करता हूँ – डॉ. अंबेडकर की जयंती को केवल एक सरकारी अवकाश या माला पहनाने तक सीमित न रखें। उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि तब मिलेगी जब – हम हर बच्चे को शिक्षा देंगे हर व्यक्ति को सम्मान से जीने का अवसर देंगे और हर पेड़ को जीवित रखने का संकल्प लेंगे डॉ. अंबेडकर ने हमें संविधान दिया, अब समय है कि हम उन्हें “हरित भारत” देकर धन्यवाद दें। अंत में आज, जब मैं इस प्रेस विज्ञप्ति को लिख रहा हूँ, मेरे सामने एक पीपल का पेड़ है – जो शांति, धैर्य और प्राणवायु का प्रतीक है। उसी तरह अंबेडकर का जीवन भी है – जिसने हमें सांस लेने का, सोचने का, और जीने का हक दिया।
जय भीम! जय भारत!
हरियाली ही क्रांति है।
संविधान ही आत्मा है।
सादर, पीपल मैन डॉ. रघुराज प्रताप सिंह
(पर्यावरणविद, संस्थापक – रघुराज पीपल मैन फाउंडेशन।)
सह संपादक पंकज कुमार गुप्ता जालौन उत्तर प्रदेश गुजरात प्रवासी न्यूज अहमदाबाद


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