अश्विन अग्रवाल, अहमदाबाद
गुजरात में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लेकर बहस तेज हो गई है। यह प्रस्तावित कानून नागरिकों के व्यक्तिगत मामलों—जैसे विवाह, तलाक, और संपत्ति के अधिकारों—में समान नियम लागू करने का उद्देश्य रखता है, जो धर्म और लिंग के भेदभाव से मुक्त होंगे। यह कानून भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 से प्रेरित है, जो राज्य को समान नागरिक संहिता लागू करने का निर्देश देता है।
गुजरात सरकार ने 2025 में एक समिति का गठन किया है, जिसकी अध्यक्षता पूर्व जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई कर रही हैं। इस समिति का उद्देश्य यूसीसी का मसौदा तैयार करना है, जिसका लक्ष्य समाज में समानता और सामाजिक एकता को बढ़ावा देना है। हालांकि, इस प्रस्ताव का विरोध भी हो रहा है, विशेषकर मुस्लिम समुदाय द्वारा। मुस्लिम संगठनों का कहना है कि यूसीसी उनके धार्मिक अधिकारों और सांस्कृतिक पहचान पर हमला कर रहा है। उनका तर्क है कि यह कानून कुरान और शरीयत से प्रेरित उनके व्यक्तिगत कानूनों में हस्तक्षेप करेगा। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) जैसे संगठनों ने यूसीसी को मुस्लिम व्यक्तिगत कानूनों को कमजोर करने की साजिश बताया है। उनका कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 उन्हें अपनी धार्मिक प्रथाओं का पालन करने का अधिकार देते हैं, और यूसीसी इसके विपरीत है।
वहीं, हिंदू पक्ष यूसीसी का समर्थन करते हुए इसे समानता और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक मानता है। उनका तर्क है कि अलग-अलग धार्मिक समुदायों के लिए अलग व्यक्तिगत कानून महिलाओं के अधिकारों के लिए हानिकारक हैं। हिंदू संगठनों का मानना है कि यूसीसी “एक राष्ट्र, एक कानून” की भावना को मजबूत करेगा और समाज में विभाजन को कम करेगा। बीजेपी और आरएसएस जैसे संगठनों ने यूसीसी को महिलाओं के खिलाफ भेदभाव वाली प्रथाओं को समाप्त करने का एक प्रभावी उपाय बताया है। उनका कहना है कि जब हिंदू कानूनों में सुधार संभव हैं, तो अन्य समुदायों को भी आधुनिक नियम अपनाने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
इस मुद्दे पर चल रही बहस ने गुजरात में सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ा दिया है। जहां एक ओर कुछ इसे समानता और न्याय का प्रतीक मानते हैं, वहीं दूसरी ओर इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर खतरा समझा जा रहा है। आगामी दिनों में इस पर चर्चा और विवाद जारी रहने की संभावना है, जिससे राज्य की सामाजिक संरचना पर गहरा असर पड़ सकता है।गुजरात में आगामी सत्र में लागू होगा : यज्ञेष दवे!
यूसीसी, मुस्लिम समाज की चिंताएं दूर करने की कोशिश
उत्तराखंड के बाद गुजरात राज्य आगामी सत्र में यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) लागू करने वाला दूसरा राज्य बनने जा रहा है। इसको लेकर मुस्लिम समाज में विभिन्न चिंताएं और सवाल उठाए जा रहे हैं, खासकर बहुपत्नी प्रथा और व्यक्तिगत कानूनी अधिकारों को लेकर। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) के प्रवक्ता यज्ञेश दवे ने इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण दिया है।
दवे ने फोन पर संवाद करते हुए कहा, “आदिवासी समाज और हिंदू समाज के ज्यादातर पर्सनल लॉ एक जैसे हैं और यूसीसी से मेल खाते हैं।” उन्होंने यह भी बताया कि आदिवासियों में बहुपत्नीत्व की प्रथा सामान्य है, लेकिन मुस्लिम समाज में इस मुद्दे को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। उनके मुताबिक, यूसीसी किसी धर्म या जाति के लोगों के शादी के अधिकारों को प्रभावित नहीं करता है।
नए यूसीसी के तहत, क्रिमिनल लॉ की तरह सिविल लॉ को सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू किया जाएगा। दवे ने यह भी स्पष्ट किया कि यूसीसी का मुख्य उद्देश्य तलाक और विरासत से जुड़ी असमानताओं को समाप्त करना है।
इस कानून के लागू होने से समाज में कानूनी समानता को बढ़ावा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है, जबकि विभिन्न समुदायों के बीच इसके प्रभाव को लेकर चर्चा जारी है।
कलीम सिद्दीकी, सामाजिक कार्यकर एवं लेखक के अनुसार गुजरात यूसीसी पूर्ण समावेशी कानून नहीं है क्योंकि उसमें तकरीबन 16% आदिवासियों को यूसीसी कानून से अलग रखा गया है और यह कानून सिर्फ मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता को खत्म करने के लिए ही लाया जा रहा है। साथ ही उन्होंने बताया कि जबरदस्ती कोई भी कानून का पालन नहीं कराया जा सकता इस कानून को मानना नहीं मानना मुस्लिमों पर आधारित है।
1 Comment
Porn full sex, Situs Bokep SITUS SEXS